नेहरू बाल पुस्तकालय >> अमवा भैया नीमवा भैया अमवा भैया नीमवा भैयागिजुभाई बधेका
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लीजिए, ये बाल-कथाएं। बच्चे इन्हें खुशी-खुशी बार-बार पढ़ेंगे और सुनेंगे...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
मेंढ़क रह गया कुंवारा
एक था मेंढ़क और एक थी गिलहरी। दोनों दोस्त थे। साथ-साथ खेलते और मौज मनाते थे। न कोई चिंता, न कोई डर। एक रोज मेंढ़क को एक विचार आया। उसने कहा, ‘गिलहरी बहन, मुझे ब्याह करना है।’ गिलहरी बोली, ‘यानी मेरे लिए भाभी लानी है। इसमें देर कैसी ! चलो भैया, मैं तुम्हारा ब्याह अभी करा देती हूं। तुम चाहोगे तो किसी राजकुमारी से करवा दूंगी।’
मेंढ़क खुश हो गया। दोनों चल पड़े। चलते-चलते रास्ते में ताड़ का एक पेड़ दिखाई दिया। गिलहरी ने कहा, ‘मेंढ़क भैया, तुम यहीं ठहरो। मैं जरा पेड़ पर चढ़ कर देखूं कि इस समय कितनी कन्याएँ झील में स्नान कर रही हैं और उनमें से कौन-सी श्रेष्ठ है।’ मेंढ़क बोला, ‘बहन, अपने साथ मुझे भी ऊपर ले चलो न ! मैं भी देखूं, श्रेष्ठ कन्या का नाक-नक्श कैसा होता है !’
तनिक सोच कर गिलहरी ने कहा, ‘ठीक है, मेरी पीठ पर बैठ जाओ, मेंढ़क फौरन उसकी पीठ पर सवार हो गया। गिलहरी उसे तेजी से ऊपर ले आई और एक पत्ते पर बैठा दिया। दूसरे पर गिलहरी फर्राटे से नीचे भी उतर गई। मेंढ़क आंखें फाड़े देखता रह गया। फिर सिर पीटते हुए बोला :
मेंढ़क खुश हो गया। दोनों चल पड़े। चलते-चलते रास्ते में ताड़ का एक पेड़ दिखाई दिया। गिलहरी ने कहा, ‘मेंढ़क भैया, तुम यहीं ठहरो। मैं जरा पेड़ पर चढ़ कर देखूं कि इस समय कितनी कन्याएँ झील में स्नान कर रही हैं और उनमें से कौन-सी श्रेष्ठ है।’ मेंढ़क बोला, ‘बहन, अपने साथ मुझे भी ऊपर ले चलो न ! मैं भी देखूं, श्रेष्ठ कन्या का नाक-नक्श कैसा होता है !’
तनिक सोच कर गिलहरी ने कहा, ‘ठीक है, मेरी पीठ पर बैठ जाओ, मेंढ़क फौरन उसकी पीठ पर सवार हो गया। गिलहरी उसे तेजी से ऊपर ले आई और एक पत्ते पर बैठा दिया। दूसरे पर गिलहरी फर्राटे से नीचे भी उतर गई। मेंढ़क आंखें फाड़े देखता रह गया। फिर सिर पीटते हुए बोला :
तिरिया से की दोस्ती, ताड़ पे डाला डेरा
ब्याह रहा बस सपना, बैंड बज गया मेरा।
ब्याह रहा बस सपना, बैंड बज गया मेरा।
सुनते हो महाबली जी
एक था सियार और एक थी उसकी जोरू। जब जोरू गर्भवती हुई तो उसने सियार से कहा, ‘मेरे होने वाले टीनू-मीनू के बापू, मैं मां बनने वाली हूं। मेरे लिए कोई बढ़िया जगह खोज आओ। दूसरे रोज सियार उसे शेर की गुफा के पास ले आया और बोला, ‘‘इससे बढ़िया प्रसव-गृह हमें कहीं और नहीं मिलेगा।’ जोरू ने हैरत जताते हुए कहा, लेकिन यह तो शेर का घर है। इसमें हम कैसे रह सकते हैं ? शेर आया तो बच्चों के साथ हमें भी खा जाएगा।’ सियार ने समझदारी की बात बताई, जो डरेगा सो मरेगा। तुम यहां रहो, और निडर हो कर बच्चो जनो।
जोरू ने गुफा में बच्चे दिए। नन्हें-मुन्ने सुंदर बच्चे ! कुछ देर बाद शेर दूर से आता दिखाई दिया। सियार और उसकी जोरू सावधान हो गए। फिर दोनों ने मिल कर नौटंकी शुरू कर दी :
जोरू ने गुफा में बच्चे दिए। नन्हें-मुन्ने सुंदर बच्चे ! कुछ देर बाद शेर दूर से आता दिखाई दिया। सियार और उसकी जोरू सावधान हो गए। फिर दोनों ने मिल कर नौटंकी शुरू कर दी :
‘अजी सुनती हो अनारकली जी’
‘क्या कहते हो महाबली जी’
‘ये बच्चे क्यों रो रहे हैं आज जी’
‘शेरे-बबर का कलेवा करना है जी’
‘क्या कहते हो महाबली जी’
‘ये बच्चे क्यों रो रहे हैं आज जी’
‘शेरे-बबर का कलेवा करना है जी’
यह सुनकर शेर चौंका। तभी सियार बोला, ‘देखो, शेर आ रहा है। मैं अभी उसका आमलेट बना कर आता हूं।’ शेर ने मन ही मन सोचा, लगता है, मुझसे भी ताकतवर कोई बड़ा जानवर आ कर मेरी गुफा में घुस गया है। उसके बच्चे मेरा कलेवा करना चाहते हैं। मुमकिन है मुमकिन है वह राक्षस हो ! भागो...शेर दुम दबा कर भागा। रास्ते में उसे एक बंदर मिला। पूछा, ‘शेरखान, यों गीदड़ की तरह कहां भागे जा रहे हो ?’ शेर बोला, ‘अब क्या बताऊं ? मेरी गुफा में कोई घुसा है। उसके बच्चे मेरा कलेवा करने कि लिए बिलबिला रहे हैं। कोई बहुत बड़ा जानवर मालूम होता है। गैंडे से भी बड़ा। हाथी से भी बड़ा। मैं तो अपनी जान बचा कर भाग आया हूं।’
बंदर ने कहा, ‘बकवास, सब बकवास। भला जंगल के राजा से बड़ा और कौन हो सकता है !
चलो मेरे साथ।’ शेर डरपोक था, बुदबुदाया, ‘नहीं-नहीं, मुझे नहीं जाना।’ बंदर ने कहा, ‘डरो मत तुम्हारी गुफा में सियारिन ने बच्चे दिए हैं। मुझे मालूम है।’
शेर बोला, ‘तब तू ही जा।’ बंदर ने उपाय सुझाया, ‘तुम्हें यकीन न हो तो आओ, हम अपनी पूंछें एक दूसरे से बांध लेते हैं।’ अब शेर को तसल्ली हुई। दोनों ने अपनी-अपनी पूंछें एक-दूसरे के साथ बांध लीं।’ अब दोनों साथ-साथ गुफा की ओर चले। दूर से ही शेर और बंदर को आते देख सियार और सियारिन ने मिल कर फिर से नौटंकी शुरू कर दी !
बंदर ने कहा, ‘बकवास, सब बकवास। भला जंगल के राजा से बड़ा और कौन हो सकता है !
चलो मेरे साथ।’ शेर डरपोक था, बुदबुदाया, ‘नहीं-नहीं, मुझे नहीं जाना।’ बंदर ने कहा, ‘डरो मत तुम्हारी गुफा में सियारिन ने बच्चे दिए हैं। मुझे मालूम है।’
शेर बोला, ‘तब तू ही जा।’ बंदर ने उपाय सुझाया, ‘तुम्हें यकीन न हो तो आओ, हम अपनी पूंछें एक दूसरे से बांध लेते हैं।’ अब शेर को तसल्ली हुई। दोनों ने अपनी-अपनी पूंछें एक-दूसरे के साथ बांध लीं।’ अब दोनों साथ-साथ गुफा की ओर चले। दूर से ही शेर और बंदर को आते देख सियार और सियारिन ने मिल कर फिर से नौटंकी शुरू कर दी !
‘अजी सुनती हो अनारकली जी’
‘क्या कहते हो महाबली जी’
‘ये बच्चे क्यों रहे रहे हैं आज जी’
‘शेरे-बब्बर का कलेवा करना है जी’
‘क्या कहते हो महाबली जी’
‘ये बच्चे क्यों रहे रहे हैं आज जी’
‘शेरे-बब्बर का कलेवा करना है जी’
अब सियार ऊंची आवाज में गाने लगा :
दोस्त बंदर आ रहा है
शेर को साथ ला रहा है
शेर को साथ ला रहा है
शेर चौंका। उसने सोचा, यह बंदर मिला हुआ है। मुझे ललचा-फुसला कर मेरा
आमलेट बनाना चाहता है। मैं तो बेमौत मारा जाऊंगा। शेर पलट कर देखे बिना ही
भागा। बंदर उसके पीछे-पीछे घिसटता चला। वह बेचारा क्या करता ! उसने शेर की
पूंछ के साथ अपनी पूंछ बांध रखी थी। आगे-आगे शेर और पीछे-पीछे बंदर। दोनों
दूर, बहुत दूर चले गए। सियार और उसकी जोरू गुफा में अब ठाठ से रहते हैं और
मौज करते हैं।
मुफ्त का माल
एक था पंडित और एक थी पंडितानी। दोनों अपने-अपने फन में पूरे उस्ताद,
बल्कि नहले पर दहला थे। एक रोज पंडित के एक जजमान के घर ब्याह का अवसर
आया। उसने सोचा ब्याह में दक्षिणा तो मिलेगी ही, थोड़ा शुद्ध घी भी मिल
जाए तो आनंद-मंगल हो जाए। लड्डू बना कर महीना भर खा सकेंगे। उसने पंडितानी
से कहा, ‘सुनती हो, भागवान ! पकोड़ीमल सेठ के घर उनकी बेटी का
ब्याह
कराने जा रहा हूं। तुम साथ चलो। विवाह का मौका है, सेठजी के घर दूध और घी
की गंगा बहती होगी। हमें थोड़ा घी मिल जाए, तो मजा आ जाए।
पंडितानी बोली, ‘आपके विचार तो नेक हैं, लेकिन इतने सारे लोगों के बीच हम घी कैसे चुरा सकेंगे ?’ पंडित ने कहा, ‘यह चिंता मेरी है। मैं ब्याह कराने मंडप में बैठूँ, तब तुम वैसा ही करना जैसा मैं कहूं।’
पंडितानी बोली, ‘आपके विचार तो नेक हैं, लेकिन इतने सारे लोगों के बीच हम घी कैसे चुरा सकेंगे ?’ पंडित ने कहा, ‘यह चिंता मेरी है। मैं ब्याह कराने मंडप में बैठूँ, तब तुम वैसा ही करना जैसा मैं कहूं।’
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